Raghuveer Sharma
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रसखान रत्नावली (सवैया -179)
सोई है रास मैं नैसुक नाच कै
नाच नचायौ कितौ सबकों जिन।
सोई है री रसखानि किते मनुहारिन
सूँघे चितौत न हो छिन।।
तौ मैं धौं कौन मनोहर भाव
बिलोकि भयौ बस हाहा करी तिन।
औसर ऐसौ मिलै न मिलै फिर लगर
मोड़ो कनौड़ौ करै छिन।।
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